विदेशी बैंकों और खासकर टैक्स हैवनों में जमा काला धन केवल भारत ही नहीं अन्य विकासशील व निर्धन देशों के लिए भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। इस समस्या के समाधान में अभी देश या विश्व स्तर पर कोई बड़ी सफलता तो नहीं मिली है पर कई विद्वानों के अनुसंधान से इसकी जो समझ बनी है, उसके आधार पर आगे समाधान की कई राहें निकलती हैं। भारत में इस समस्या के बारे में व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाने में बाबा रामदेव ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसका श्रेय उन्हें अवश्य मिलना चाहिए, लेकिन दूसरी ओर यह कहना भी जरूरी है कि बाबा की इस विषय की समझ व प्रस्तुति
न सिर्फ अति सरलीकरण का नमूना है, बल्कि विसंगतियों व पक्षपात से भरी हुई भी है। लगता है उनका निशाना कुछ विशेष राजनीतिक ताकतों या हस्तियों पर रहा, जिसके कारण इस विषय की संतुलित प्रस्तुति वह नहीं कर सके।
स्विस बैंकों से आगे
टैक्स हैवन छिपाए गए टैक्स व अन्य अवैध धन को ठिकाने लगाने के सफेदपोश अड्डे हैं। दुनिया में जगह-जगह बने टैक्स हैवन में इस धन को छिपा कर रखा जाता है। वहां यह या तो टैक्स मुक्त होता है या इस पर बहुत कम टैक्स लगाया जाता है। जो व्यक्ति या कंपनियां बड़े पैमाने का भ्रष्टाचार करते हैं या कोई अन्य आर्थिक अपराध करते हैं, वे इन टैक्स हैवन में बैंकों को मोटी फीस देकर अपना धन सुरक्षित रखते हैं। ये बैंक गोपनीयता व अपारदर्शिता के लिए कुख्यात हैं, हालांकि हाल के प्रयासों से कुछ सुधार भी हुआ है। सामान्य बातचीत में टैक्स हैवन की चर्चा होने पर प्राय: स्विस बैंकों की ही बात होती है पर हकीकत यह है कि इनका जाल बहुत ज्यादा फैला हुआ है। टैक्स जस्टिस नेटवर्क द्वारा तैयार की गई एक तालिका में दुनिया भर में 81 टैक्स हैवन गिनाए गए हैं।
अमीर देश भी फंसे
इन टैक्स हैवनों का एक दुरुपयोग तो यही होता है कि तरह-तरह के भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी में लिप्त अति धनी व्यक्ति यहां अपना अवैध धन जमा करते हैं। इनका दूसरा दुरुपयोग यह होता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां इन टैक्स हैवनों का इस्तेमाल इस तरह से करती हैं कि विभिन्न देशों में उनके मुनाफे को बहुत कम दिखाया जा सके और टैक्स से बचा जा सके। वैसे तो ये कंपनियां टैक्स हैवन के बिना भी ऐसी तिकड़म करती रही हैं, पर टैक्स हैवन के अपारदर्शी और गोपनीय माहौल में वे अपनी कारगुजारियां अधिक बड़े पैमाने पर कर ले जाती हैं। विकासशील व निर्धन देशों का बजट घाटा लगातार बढ़ने के पीछे एक बड़ा कारण यही है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां अरबों डॉलर का टैक्स चुरा कर मौज-मस्ती कर रही हैं। टैक्स हैवनों का एक अन्य दुष्परिणाम यह है कि इससे आर्थिक व अन्य अपराधियों की स्थिति मजबूत होती है। अपराध के विश्व स्तर पर फलने-फूलने के लिए जिस आर्थिक आधार की जरूरत है, उसे प्रदान करने में टैक्स हैवन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
धनी व विकसित देशों ने वर्ष 1980 के बाद आए वित्तीय बंधनहीनता के दौर में इन टैक्स हैवनों की तेज वृद्धि कोप्रोत्साहित करने में में कई तरह का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष योगदान दिया है। यहां के सबसे धनी व्यक्तियों व संस्थानोंने इस वृद्धि से बहुत मुनाफा भी बटोरा। पर साथ ही इन टैक्स हैवनों ने कई धनी देशों की अर्थव्यवस्था कीबुनियाद को भी ढीला किया। इनकी बढ़ती उपस्थिति के कारण वित्तीय अनियमितताओं व संदिग्ध वित्तीयपरिसंपत्तियों के लेन-देन में वृद्धि हो गई। इस तरह वित्तीय संकट की भूमिका तैयार करने में टैक्स हैवनों का बहुतयोगदान था। अमेरिका जैसी अर्थव्यवस्थाओं का बजट घाटा बढ़ने के साथ ही उन्हें भी यह चिंता सताने लगी किजिन व्यक्तियों व संस्थानों से सबसे अधिक टैक्स वसूला जा सकता है, वे तो अपना पैसा टैक्स हैवन में जमाकररहे हैं।
इस पृष्ठभूमि में ही यह बहुचर्चित घटना हुई कि अमेरिका की एक अदालत ने स्विट्जरलैंड के एक बड़े बैंक कोहजारों अमेरिकी नागरिकों के खातों के बारे में जानकारी देने के लिए कहा। इसके साथ ही कुछ धनी देशों केव्यवसायियों ने भी टैक्स हैवन के विरुद्ध अभियान चलाने का प्रस्ताव किया क्योंकि उन्हें लगा कि टैक्स हैवनों कादुरुपयोग कर रही कंपनियां उन्हें पीछे छोड़ देती हैं। इस क्रम में धनी देशों में भी टैक्स हैवन के विरुद्ध अभियानचलाने के कुछ अवसर उपलब्ध हुए हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है। पर मुख्य एकता तो विकासशील औरगरीब देशों के बीच ही बननी चाहिए क्योंकि टैक्स हैवनों के अवैध खातों में जमा धनराशि से सबसे अधिक क्षतिउन्हीं की हो रही है।इस समस्या की व्यापकता को देखते हुए स्पष्ट है कि अनेक देशों की सरकारों की आपसीएकता से व कई आंदोलनों, गैर-सरकारी संगठनों आदि को साथ लेकर वर्षों तक अभियान चलाने के बाद हीसफलता मिलेगी।
घरेलू काला धन
इस अभियान का एक उद्देश्य तो यह होना चाहिए कि विदेशों में जमा काले धन को वापस लाकर देश के जरूरीकार्यों, विशेषकर गरीबी दूर करने में लगाया जाए। पर उतना ही जरूरी यह भी है कि टैक्स हैवनों की व्यवस्थाको सदा के लिए समाप्त किया जाए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो आज जो धन वापस आएगा वह कल फिर बाहर चलाजाएगा। अत: टैक्स हैवनों की मूल अवधारणा के विरुद्ध व इस पूरी व्यवस्था के विरुद्ध ही व्यापक अभियानचलाना होगा तभी विदेशों में जमा काले धन व इससे जुड़ी अन्य समस्याओं को दूर किया जा सकेगा। यह कार्यबहुत महत्त्वपूर्ण है पर साथ ही यह कहना जरूरी है कि इसके साथ ही घरेलू काले धन के विरुद्ध प्रयास करतेरहना भी उतना ही जरूरी है। भारत जैसे बड़ी घरेलू अर्थव्यवस्था वाले देश में प्रतिवर्ष कुल जितने काले धन कासृजन होता है उसमें अधिकांश हिस्सा घरेलू काले धन का होता है। अत: इस घरेलू काले धन के विरुद्ध भीअभियान उतनी ही मजबूती से चलाया जाना चाहिए।
भारत डोगरा॥
न सिर्फ अति सरलीकरण का नमूना है, बल्कि विसंगतियों व पक्षपात से भरी हुई भी है। लगता है उनका निशाना कुछ विशेष राजनीतिक ताकतों या हस्तियों पर रहा, जिसके कारण इस विषय की संतुलित प्रस्तुति वह नहीं कर सके।
स्विस बैंकों से आगे
टैक्स हैवन छिपाए गए टैक्स व अन्य अवैध धन को ठिकाने लगाने के सफेदपोश अड्डे हैं। दुनिया में जगह-जगह बने टैक्स हैवन में इस धन को छिपा कर रखा जाता है। वहां यह या तो टैक्स मुक्त होता है या इस पर बहुत कम टैक्स लगाया जाता है। जो व्यक्ति या कंपनियां बड़े पैमाने का भ्रष्टाचार करते हैं या कोई अन्य आर्थिक अपराध करते हैं, वे इन टैक्स हैवन में बैंकों को मोटी फीस देकर अपना धन सुरक्षित रखते हैं। ये बैंक गोपनीयता व अपारदर्शिता के लिए कुख्यात हैं, हालांकि हाल के प्रयासों से कुछ सुधार भी हुआ है। सामान्य बातचीत में टैक्स हैवन की चर्चा होने पर प्राय: स्विस बैंकों की ही बात होती है पर हकीकत यह है कि इनका जाल बहुत ज्यादा फैला हुआ है। टैक्स जस्टिस नेटवर्क द्वारा तैयार की गई एक तालिका में दुनिया भर में 81 टैक्स हैवन गिनाए गए हैं।
अमीर देश भी फंसे
इन टैक्स हैवनों का एक दुरुपयोग तो यही होता है कि तरह-तरह के भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी में लिप्त अति धनी व्यक्ति यहां अपना अवैध धन जमा करते हैं। इनका दूसरा दुरुपयोग यह होता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां इन टैक्स हैवनों का इस्तेमाल इस तरह से करती हैं कि विभिन्न देशों में उनके मुनाफे को बहुत कम दिखाया जा सके और टैक्स से बचा जा सके। वैसे तो ये कंपनियां टैक्स हैवन के बिना भी ऐसी तिकड़म करती रही हैं, पर टैक्स हैवन के अपारदर्शी और गोपनीय माहौल में वे अपनी कारगुजारियां अधिक बड़े पैमाने पर कर ले जाती हैं। विकासशील व निर्धन देशों का बजट घाटा लगातार बढ़ने के पीछे एक बड़ा कारण यही है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां अरबों डॉलर का टैक्स चुरा कर मौज-मस्ती कर रही हैं। टैक्स हैवनों का एक अन्य दुष्परिणाम यह है कि इससे आर्थिक व अन्य अपराधियों की स्थिति मजबूत होती है। अपराध के विश्व स्तर पर फलने-फूलने के लिए जिस आर्थिक आधार की जरूरत है, उसे प्रदान करने में टैक्स हैवन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
धनी व विकसित देशों ने वर्ष 1980 के बाद आए वित्तीय बंधनहीनता के दौर में इन टैक्स हैवनों की तेज वृद्धि कोप्रोत्साहित करने में में कई तरह का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष योगदान दिया है। यहां के सबसे धनी व्यक्तियों व संस्थानोंने इस वृद्धि से बहुत मुनाफा भी बटोरा। पर साथ ही इन टैक्स हैवनों ने कई धनी देशों की अर्थव्यवस्था कीबुनियाद को भी ढीला किया। इनकी बढ़ती उपस्थिति के कारण वित्तीय अनियमितताओं व संदिग्ध वित्तीयपरिसंपत्तियों के लेन-देन में वृद्धि हो गई। इस तरह वित्तीय संकट की भूमिका तैयार करने में टैक्स हैवनों का बहुतयोगदान था। अमेरिका जैसी अर्थव्यवस्थाओं का बजट घाटा बढ़ने के साथ ही उन्हें भी यह चिंता सताने लगी किजिन व्यक्तियों व संस्थानों से सबसे अधिक टैक्स वसूला जा सकता है, वे तो अपना पैसा टैक्स हैवन में जमाकररहे हैं।
इस पृष्ठभूमि में ही यह बहुचर्चित घटना हुई कि अमेरिका की एक अदालत ने स्विट्जरलैंड के एक बड़े बैंक कोहजारों अमेरिकी नागरिकों के खातों के बारे में जानकारी देने के लिए कहा। इसके साथ ही कुछ धनी देशों केव्यवसायियों ने भी टैक्स हैवन के विरुद्ध अभियान चलाने का प्रस्ताव किया क्योंकि उन्हें लगा कि टैक्स हैवनों कादुरुपयोग कर रही कंपनियां उन्हें पीछे छोड़ देती हैं। इस क्रम में धनी देशों में भी टैक्स हैवन के विरुद्ध अभियानचलाने के कुछ अवसर उपलब्ध हुए हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है। पर मुख्य एकता तो विकासशील औरगरीब देशों के बीच ही बननी चाहिए क्योंकि टैक्स हैवनों के अवैध खातों में जमा धनराशि से सबसे अधिक क्षतिउन्हीं की हो रही है।इस समस्या की व्यापकता को देखते हुए स्पष्ट है कि अनेक देशों की सरकारों की आपसीएकता से व कई आंदोलनों, गैर-सरकारी संगठनों आदि को साथ लेकर वर्षों तक अभियान चलाने के बाद हीसफलता मिलेगी।
घरेलू काला धन
इस अभियान का एक उद्देश्य तो यह होना चाहिए कि विदेशों में जमा काले धन को वापस लाकर देश के जरूरीकार्यों, विशेषकर गरीबी दूर करने में लगाया जाए। पर उतना ही जरूरी यह भी है कि टैक्स हैवनों की व्यवस्थाको सदा के लिए समाप्त किया जाए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो आज जो धन वापस आएगा वह कल फिर बाहर चलाजाएगा। अत: टैक्स हैवनों की मूल अवधारणा के विरुद्ध व इस पूरी व्यवस्था के विरुद्ध ही व्यापक अभियानचलाना होगा तभी विदेशों में जमा काले धन व इससे जुड़ी अन्य समस्याओं को दूर किया जा सकेगा। यह कार्यबहुत महत्त्वपूर्ण है पर साथ ही यह कहना जरूरी है कि इसके साथ ही घरेलू काले धन के विरुद्ध प्रयास करतेरहना भी उतना ही जरूरी है। भारत जैसे बड़ी घरेलू अर्थव्यवस्था वाले देश में प्रतिवर्ष कुल जितने काले धन कासृजन होता है उसमें अधिकांश हिस्सा घरेलू काले धन का होता है। अत: इस घरेलू काले धन के विरुद्ध भीअभियान उतनी ही मजबूती से चलाया जाना चाहिए।
भारत डोगरा॥